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- अनजाने में किये हुये पापो का प्रायश्चित कैसे ? राजा परीक्षित के शुकदेव मुनी से प्रश्न-उत्तर...?
Posted by : achhiduniya
24 June 2022
भक्ति मार्ग में एक बहुत सुन्दर प्रश्न है कि यदि
हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है।
श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में, महाराज
परीक्षित जी,
श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न कर लिए। बोले देव
जी आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया, उसको
सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं। गुरुवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ
पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं, जैसे चींटी मर गयी, हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर
जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं, उस लकड़ी
में भी कितने जीव मर जाते हैं और काम-वासना आदि ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने में हो
जाते हैं। तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है। आचार्य शुकदेव जी ने कहा राजन ऐसे
पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए। महाराज
परीक्षित जी ने कहा, एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है
तो सोंचना पड़ता है। आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं। मुनी बोले राजन पहला यज्ञ:- जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के
लिए
निकाल देना चाहिए। दूसरा यज्ञ:- चींटी
को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए। तीसरा यज्ञ:- पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।चौथा
यज्ञ:- आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में
मछलियो को डालना चाहिर। पांचवां यज्ञ:-
भोजन बनाकर अग्नि भोजन, रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके
उसमे घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ। राजन अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे। राजन
ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है। हमे उसका दोष नहीं
लगता। उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता। राजा ने पुनः- पूछ लिया, यदि गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता
है क्या...?
तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं। राजन:-
कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते। अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं
विमर्शनम् ।। नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें।
कोई व्यक्ति तपस्या
के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई
व्यक्ति यम,
नियम, आसन के
द्वारा प्रायश्चित करता है,लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ
राजन्! केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायण। राजन केवल हरी ( परम पिता परमात्मा
शिव) नाम संकीर्तन से ही जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य
है। इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते-जागते, उठते-बैठते उस निराकार परमपिता परमात्मा शिव का नाम रटते रहो।
राजन एक बात का ध्यान रखें कि याद हमेशा उस
निराकार को करे, जो अजर हैं, अमर है, अभोक्ता हैं, किसी देह-धारी(मनुष्य) को नहीं।
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