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Posted by : achhiduniya
02 January 2025
नागा
साधुओं को आपने भी अवश्य देखा होगा। ये हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। इसके पीछे नागा
साधु जो तर्क देते हैं वो यह है कि, इंसान दुनिया में निर्वस्त्र
ही आया है। प्राकृतिक रूप से व्यक्ति को संसार में रहना चाहिए, इसीलिए
नागा साधु वस्त्र नहीं पहनते। दूसरी धारणा यह है कि वस्त्र धारण करने से उनकी साधना में भी विघ्न पड़ता है।
अगर साधु वस्त्रों के माया जाल में ही फंसा रहेगा तो उसके कारण काफी समय खराब होगा। यह वजह भी है कि नागा साधु कभी वस्त्र धारण करना पसंद
नहीं करते। वो प्राकृतिक रूप में रहकर आसानी से हर कार्य को करते हैं। योग करके
नागा साधु अपनी देह को इतना मजबूत कर देते हैं कि, हर
परिस्थिति और जलवायु में वो निर्वस्त्र
जी सकते हैं। जहां भी नागा साधु डेरा डालते हैं वहां धुनि अवश्य
जलाते हैं। इस धुनि को बेहद पवित्र माना जाता है और इससे जुड़े कई नियम भी हैं।
धुनि की आग को साधारण आग नहीं माना जाता। यह सिद्ध मंत्रों के प्रयोग से सही
मुहूर्त में जलाई जाती है। इसे जलाने का एक नियम यह भी है कि नागा साधु बिना गुरु के आदेश या सानिध्य के धुनि नहीं
जला सकता। एक बार धुनि जलने के बाद, धुनि जलाने वाले नागा साधु को उसके निकट ही रहना पड़ता है।
अगर किसी परिस्थिति में नागा साधु को धुनि के पास से जाना पड़े तो उसका कोई सेवक
वहां जरूर होना चाहिए।
नागा साधुओं के पास जो चिमटा होता है, वो
भी केवल इसीलिए होता है कि, धुनि की आग को व्यवस्थित
किया जा सके। नागा साधु यह मानते हैं कि पवित्र धुनि के पास बैठकर अगर नागा साधु
कोई बात बोल दे तो वो पूरी अवश्य होती है। जब नागा साधु यात्रा करते हैं तो धुनि
उनके पास नहीं होती, लेकिन जहां भी ये अपना डेरा
जमाते हैं वहां धुनि अवश्य जलाते हैं। नागा साधु 12 साल
तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद पूर्ण रूप से दीक्षित होते हैं। अपने दीक्षा
काल के दौरान नागा साधु हिमालय के दुर्गम पहाड़ों में तप करते हैं। लेकिन जब भी
महाकुंभ का स्नान होता है, तो रहस्यमयी तरीके से ये उस
स्थान पर पहुंच जाते हैं।