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बाहर आया 2,002 करोड़ घोटालों का जिन्न ,CAG की ताजा रिपोर्ट में दिल्ली की आबकारी नीति और शराब लाइसेंस जारी करने में नियमों का उल्लंघन....
Posted by : achhiduniya
25 February 2025
नई
आबकारी नीति 2021-22 में भी कई खामियां पाई गईं। सरकार ने निजी
कंपनियों को थोक व्यापार का लाइसेंस देने का निर्णय लिया,
जिससे सरकारी
कंपनियों को बाहर कर दिया गया। कैबिनेट की मंजूरी के बिना नीति में महत्वपूर्ण
बदलाव किए गए,जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इस नीति के
कारण सरकार को ₹2,002 करोड़ का नुकसान हुआ। कई कंपनियों ने अपने
लाइसेंस बीच में ही वापस कर दिए,जिससे बिक्री प्रभावित हुई और सरकार को ₹890
करोड़ का घाटा हुआ।
सरकार ने जोनल लाइसेंस धारकों को ₹941 करोड़ की छूट दी,
जिससे राजस्व घाटा
हुआ। कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने लाइसेंस फीस
में ₹144 करोड़ की
छूट दी,
जो आबकारी विभाग के
पहले के निर्देशों के खिलाफ थी। दिल्ली सरकार के कुल कर राजस्व का लगभग 14%
योगदान आबकारी विभाग
से आता है। यह विभाग शराब और नशीले पदार्थों के व्यापार को नियंत्रित और विनियमित
करता है,साथ ही शराब की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की भी
जिम्मेदारी निभाता है। 1 जुलाई 2017
से जीएसटी लागू होने
के बाद, मानव उपभोग के लिए शराब ही एकमात्र ऐसा
उत्पाद था जिस पर उत्पाद शुल्क लागू रहा, इसलिए आबकारी विभाग का मुख्य राजस्व शराब की
बिक्री से आता है।
कैग रिपोर्ट में पाया गया कि आबकारी विभाग ने लाइसेंस जारी करने
के दौरान नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया। दिल्ली आबकारी नियम,
2010 के नियम 35
के अनुसार,
एक ही व्यक्ति या
कंपनी को अलग-अलग प्रकार के लाइसेंस (थोक,
खुदरा,
होटल-रेस्तरां) नहीं
दिए जा सकते,लेकिन जांच में पाया गया कि कुछ कंपनियों को एक साथ कई प्रकार के
लाइसेंस दिए गए। शराब की आपूर्ति प्रणाली में कई पक्ष शामिल होते हैं। निर्माताओं,
दिल्ली में स्थित
गोदामों, सरकारी और निजी शराब की दुकानों,
होटलों,
क्लबों और रेस्तरां
से होते हुए आखिरकार उपभोक्ताओं तक शराब पहुंचती है। आबकारी विभाग विभिन्न मदों से
राजस्व एकत्र करता है, जैसे- उत्पाद शुल्क,
लाइसेंस शुल्क,
परमिट शुल्क,
आयात/निर्यात शुल्क
आदि। कई मामलों में आबकारी विभाग ने बिना जरूरी जांच किए ही लाइसेंस जारी कर दिए।
इसमें
वित्तीय स्थिरता, बिक्री और कीमतों से जुड़े दस्तावेज,
अन्य राज्यों में
घोषित कीमतें, और आवेदकों के आपराधिक रिकॉर्ड की जांच जैसे
महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे। कुछ कंपनियों ने शराब व्यापार में कार्टेल बनाने और
ब्रांड प्रमोशन के लिए अपनी हिस्सेदारी को छुपाने के लिए प्रॉक्सी मालिकाना हक का
सहारा लिया। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि थोक विक्रेताओं को शराब की फैक्ट्री से
निकलने वाली कीमत तय करने की स्वतंत्रता दी गई,
जिससे कीमतों में
हेरफेर किया गया। जांच में पाया गया कि एक ही कंपनी द्वारा विभिन्न राज्यों में
बेची जाने वाली शराब की कीमत अलग-अलग थी। मनमाने ढंग से तय की गई कीमतों के कारण
कुछ ब्रांडों की बिक्री घटी और सरकार को उत्पाद शुल्क के रूप में नुकसान हुआ। सरकार ने कंपनियों से लागत मूल्य की जांच नहीं
की, जिससे मुनाफाखोरी और कर चोरी की संभावना बनी रही।

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